सतना ।  मध्य प्रदेश सरकार भले ही विकास के दावे करती रही, लेकिन प्रदेश के आज भी कई जिले ऐसे हैं, जहां पर लोगों को बुनियादी सुविधाओं से जूझना पड़ रहा है। लाचार और मजबूर ग्रामीण जिला स्तर से लेकर क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों को अपनी समस्या से अवगत कराया, लेकिन कार्रवाई के नाम पर उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिलता चला रहा है। मामला सतना जिले के उचेहरा क्षेत्र के ग्राम धौसड़ का है, जहां आजादी के 70 दशक बीत जाने के बाद भी आज गांव के बीमार लोगों को खाट पर रख इलाज के लिए अस्पताल जाना पड़ता है, एक हजार की आबादी वाले आदिवासी बाहुल्य धौंसड गांव की जहां पर आज भी अगर कोई बीमार हो जाता है तो खाट पर मरीज को हिचकोले खाते कीचड़ भरे पगडंडी रास्ते से होकर पिपरिया गांव में इलाज के लिए ले जाते हैं। वहां भी इलाज की सरकारी सुविधा नहीं होने से प्राइवेट चिकित्सक से इलाज कराते हैं।

इलाज के अभाव में मरीज तोड़ रहे दम

ऐसे में मरीज की हालत ज़्यादा नाजुक होने पर बाहर इलाज के लिये ले जाने से पहले ही मरीज दम तोड़ देता है। धौंसड़ गांव के इस कच्चे रास्ते को अगर प्रशासन ठीक से चलने लायक ही बना दे तो जो अभी तीन पंचायत को पार कर 10 किलोमीटर की दूरी तय कर पिपरिया गांव इलाज कराने यहां के लोगों को जाना पड़ता है। वह समस्या हल हो सकती है। बताया जा रहा है, लंबे समय से धौंसड गांव की जनता अपने क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों से इस ओर ध्यान देने की बात करती आ रही है, लेकिन किसी ने इन ग्रामीणों की आवाज पर अब तक ध्यान नहीं दिया। धौंसड गांव के लोगों को इलाज के अलावा दैनिक दिनचर्या का सामान भी लेना होता है तो तीन पंचायत पटीहट, गढौत और तुषगवां को पार कर अपनी पंचायत पिपरिया जाते हैं, क्योंकि आस पास की पंचायतों में एक बड़ा बाजार पिपरिया ही है, जहां उपचार से लेकर गृहस्थी का जरूरी सभी सामान सहज मिल जाता है।

लगाना पड़ता है 10 किमी का चक्कर

धौंसड से पिपरिया के बीच की कच्चे रास्ते से दूरी मात्र एक किलोमीटर है। सही रास्ता न होने से यहां के लोग 10 किलोमीटर का चक्कर लगाकर अपनी पंचायत पिपरिया पहुंचते हैं, अब देखना होगा कि इन ग्रामीणों की समस्या का हल आखिरकार कब होगा।