सुखी, स्वाभिमान एवं सम्मान के साथ जीवन जीने के तीन सूत्र हैं- उपयोगिता, भावना एवं कर्तव्य। उपयोगिता संबंधों को प्रगाढ़ करती है, भावना परिवार को मजबूत करती है और कर्तव्य घर, परिवार, समाज में एकता एवं समन्वय स्थापित करते हैं। उक्त प्रेरक विचार मुनि पुलकसागर महाराज ने प्रवचन माला में व्यक्त किए।   
उन्होंने कहा कि उपयोगिता के बदले उपयोगिता, भावना के बदले भावना चाहिए, लेकिन कर्तव्य के बदले कुछ नहीं चाहिए। कर्तव्य तो निस्वार्थ भावना से किए जाते हैं। छोटी-सी भूल सदियों की सजा बन जाती है, इसलिए हमें जीवन सही और व्यवस्थित तरीके से जीना चाहिए। जिन माँ-बाप ने हमें खून दिया उन्हें बुढ़ापे में खून के आँसू बहाने पर मजबूर करना कायरता है। जिन्होंने अपने खून से हमे बड़ा किया उनके लिए खून बहा देना मानवता है, जबकि असहाय जीवों का खून बहा देना हिंसा और अमानवीयता है।   
भगवान राम ने कर्तव्य की खातिर सौतेली माँ के वचनों को स्वीकार कर लिया, क्या आप भी इतने कर्तव्यनिष्ठ होकर अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं? अगर नहीं तो आपका जीवन सार्थक नहीं है। श्रवण कुमार अपने पुत्र होने का कर्तव्य बगैर किसी तर्क के निभाता है। कर्तव्य के पालन में तर्क नहीं समर्पण की जरूरत पड़ती है।