धार्मिक नगरी उज्जैन में मां शिप्रा के तट रामघाट पर एक ऐसा चमत्कारी मंदिर है, जहां विराजित शिवलिंग के दर्शन करने मात्र से ही कभी भी पिशाच योनि प्राप्त नहीं होती है। साथ ही यहां पूजन अर्चन करने से वह पितृ भी पिशाच की योनि से मुक्त हो जाते हैं जो कि नर्क की यातना भोग रहे हों। रामघाट पर शिप्रा आरती द्वार के पास और धर्मराज मंदिर के सामने  पिशाच मुक्तेश्वर महादेव का अतिप्राचीन मंदिर स्थित है, जो कि 84 महादेव में 68वें स्थान पर आते हैं।

मंदिर की पुजारी उषा ज्ञानेश जोशी ने बताया कि  पिशाच मुक्तेश्वर की महिमा अपरंपार है। मंदिर में भगवान का काले पाषाण का शिवलिंग हैं। साथ ही भगवान  गणेश, माता पार्वती, कार्तिकेय के साथ ही द्वार पर माता गंगा, माता शिप्रा और हनुमान जी की प्रतिमा भी है। गर्भग्रह में नाग की छाया के नीचे यह शिवलिंग विराजित है जहां एक और त्रिशूल और दूसरी और डमरु लगा हुआ है, जबकि जलाधारी पर दो सूर्य और चंद्रमा भी हैं। रामघाट पर पिंडदान के विसर्जन के पूर्व पिंडो को पिशाच मुक्तेश्वर के ही दर्शन करवाए जाते हैं, ताकि इन्हें पिशाच की योनि न मिले।

स्कंद पुराण के अवंती खंड में उल्लेखित  पिशाच मुक्तेश्वर की कथा बताती है कि वर्षों पूर्व सोमा नाम का एक व्यक्ति हुआ करता था जो अत्यधिक धनवान था, लेकिन वह कभी किसी देवता की पूजा अर्चना नहीं करता था। अधर्म के रास्ते पर चलने के कारण उसकी कोई संतान नहीं थी। इस जन्म में तो कई कष्टों से सोमा की मौत हुई ही लेकिन अगले जन्म मे उसे पूर्व में किए गए अत्याचार के कारण पिशाच की योनि मिली। इस जन्म में भी वह अपने स्वभाव के अनुसार ही बेकसूर लोगों को परेशान करता था, एक दिन जब वह एक ब्राह्मण की जान लेना चाहता था।

उसी समय ब्राह्मण ने उसे अपनी जान ना लेने पर इस पिशाच की योनि से मुक्त होने का मार्ग बताने को कहा क्योंकि पिशाच कष्टों से परेशान हो चुका था इसीलिए उसने तुरंत ब्राह्मण की बात सुनी और महाकाल वन के रामघाट स्थित  पिशाच मुक्तेश्वर के दर्शन करने पहुंच गया। यहां जैसे ही पिशाच ने  पिशाचमुक्तेश्वर के दर्शन किए वैसे ही वह इस योनि से मुक्त हो गया और परमगति को प्राप्त हुआ। कथा बताती है कि यह एक ऐसे महादेव हैं, जिनके दर्शन करने मात्र से ही किसी को पिशाच की योनि प्राप्त नहीं होती और उनके पूर्वज जो कि किसी कारणवश इस योनि की यातना भुगत रहे हैं वह भी इस योनि से मुक्त हो जाते हैं।