सादगी से 32 उपवास सहित चार तपस्या पूर्ण हुआ परना

मेघनगर !   जिस व्यक्ति से परिचय अच्छा हो उस पर विश्वास बढ़ता चला जाता है उसी प्रकार हम अगर धर्म को समझेंगे तो हमारी धर्म के प्रति श्रद्धा ओर बढ़ेगी धर्म को जानने के लिये नो तत्वों का ज्ञान एवं परमार्थ का ज्ञान समझना जरूरी है  मनुष्य भव अति दुर्लभ है देवता 33 हजार साल मे एक बार आहार लेते है परन्तु वो तप नहीं कर पाते कर्म निर्जरा के लिये इच्छापूर्वक प्रत्याख्यान ही तपस्या कहलाता है उपरोक्त जिनवाणी फरमाते हुये पूज्य संयत मुनीजी म.सा. ने युवा तपस्वी कविद्र धोका के 32 उपवास की बड़ी तपस्या पूर्ण होने पर उन्हे तप के अनुभवी की उपमा दी जिस प्रकार जहाँ न पहुँचे रवि वहां पहुंच जाते है कवि ओर जहाँ ना पहुँचे कवि वहां पहुंच जाते है अनुभवी जैसे उद्बोधन के साथ कविंद्र के मासछमन का अनुमोदन श्री संघ द्वारा शाल, माला ओर से संघ की भेंट देकर किया आपका बहुमान श्रीमती प्रीतीजी धोका ने  21 उपवास ओर श्री सुदर्शन जी मेहता ने 9 उपवास से कविन्द्रजी का बहुमान किया साथ हीअभिनंदन पत्र का वांचन श्री विनोद जी बाफना ने किया अभिनंदन पत्र श्री यशवंत जी बाफना, पंकज जी वागरेचा, प्रकाशजी भंडारी, विनोदजी बाफना ने दिया दीपेश लुनिया के 18 उपवास का बहुमान श्री संघ द्वारा शाल ओर संघ की भेंट देकर किया श्री सुनीलजी श्रीमार लिमडी ने 8 उपवास की बोली लेकर आपका बहुमान किया श्रीमती मंजू बहन भंडारी के 17 उपवास का बहुमान श्री संघ द्वारा किया गया श्री यशवंत जी बाफना श्रीमती चंदनबाला जी वरमेचा दोनो के 8 उपवास की तपश्या पूर्ण होने पर श्री संघ द्वारा शाल ओर माला ओर संघ की भेंट देकर स्वागत किया संचालन विपुल धोका ने किया