प्रदेश में अरवा चावल के लिए सरकार अभियान चला सकती है। जब धान से सीधे चावल निकाला जाता हैं तो वह अरवा या सफेद चावल कहलाता हैं। इस तरह धान से निकाले गए चावल का रंग हल्का पीला या भूरा हो जाता हैं। उसना चावल के लिए पहले धान को भांप में हल्का पकाया जाता हैं। हालांकि उसना चावल सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है।  डा. दीपक शर्मा ने कहा राज्य सरकार को अरवा चावल के लिए उपयुक्त किस्मों को किसानों को लगाने को प्रोत्साहित करे। बीज निगम को इंन्डेंट भी दिया जाए। वर्तमान में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय अरवा चावल के लिए बहुत अच्छी उपज वाली अनेक किस्में विकसित की हैं। अरवा चावल के लिए उपयुक्त किस्में विक्रम टीसीआर, ट्राम्बे छत्तीसगढ़ सोनागाठी म्युटेंट, छत्तीसगढ़ देवभोग, छत्तीसगढ़ धान 1919, माहेश्वरी, जिंको धान एमएस, प्रोटाजिन, छत्तीसगढ़ बरानी धान-2, ट्राम्बे छत्तीसगढ़ दुबराज म्युटेंट-1, जिंक राइस-2, विक्रम-टीसीआर, परमाणु विकिरण से विकसित नवीन किस्म बौना सफरी की उपज क्षमता 6-7 टन प्रति हेंक्टेयर हैं जो कि हाइब्रिड धान की उपज के बराबर हैं।

यह किस्म परंपरागत किस्म सफरी-17 में विकिरण तकनीक का उपयोग करके सुधार किया गया हैं। यह किस्म छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए वरदान साबित होगी। जो किसान हाइब्रिड धान की आकर्षित होकर प्रति वर्ष बीज खरीदने पर मजबूर होते हैं, परंतु बौना सफरी किस्म कों तीन-चार वर्ष तक बीज में उपयोग करके हाइब्रिड धान के बराबर उत्पादन प्राप्त कर सकतें है। यह मध्यम मोटा प्रकार के दाने की प्रजाति हैं। इस प्रजाति के पौधे की उंचाई 110-115 सेमी. होने से पौध गिरते नहीं है। पकने की अवधि 135-140 दिन हैं जो कि परंपरागत सोनागाठी प्रजाति से 10 से 15 दिन पहले पककर तैयार हो जाती हैं। इस किस्म की उर्वरक उपयोग क्षमता अधिक होने से उपज क्षमता में वृद्धि हो गयी हैं। यह प्रजाति परम्परागत सोनागाठी से 18 प्रतिशत अधिक उपज लगभग 60 कुन्तल प्रति हेक्टेयर होती हैं।