फीफा विश्वकप में एशियाई देशों के सामने भागीदारी से ऊपर उठकर कुछ कर दिखाने की चुनौती होगी। यह पहली बार है जब छह एशियाई देश (कोरिया, जापान, सऊदी अरब, कतर, ऑस्ट्रेलिया (एशियाई परिसंघ में शामिल), ईरान) 32 टीमों के विश्वकप में शिरकत करने जा रहे हैं।

फीफा विश्वकप के 92 साल के इतिहास में एशियाई देशों का प्रदर्शन उल्लेखनीय नहीं रहा है। सिर्फ 13 देश ही विश्वकप में खेलें हैं। इनमें कोरिया 2002 में सेमीफाइनल में पहुंचा और उत्तर कोरिया 1966 के विश्वकप के क्वार्टर फाइनल में पहुंच सका है।

विश्वकप में एशियाई देशों का यही सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। 2002 और 2010 के दो ही ऐसे विश्वकप रहे हैं, जब दो एशियाई टीमों ने एक साथ दूसरे दौर में जगह बनाई।12 साल बाद एक से अधिक एशियाई टीमों के पास दूसरे दौर में जगह बनाने का मौका होगा।

जापान सर्वाधिक तीन बार पहले दौर से आगे बढ़ा

यह दूसरा मौका है जब फीफा ने विश्वकप की मेजबानी एशियाई देश को सौंपी है। इससे पहले 2002 में कोरिया और जापान ने मिलकर विश्वकप आयोजित किया था। कतर को मेजबान होने के नाते पहली बार विश्वकप में प्रवेश मिला है। कोरिया ऐसी एशियाई टीम है जो सर्वाधिक 10 बार विश्वकप में शिरकत करने जा रही है, लेकिन इस देश ने 2002 में सेमीफाइनल में जगह बनाई, जबकि 2010 में वह दूसरे दौर में पहुंची।

जापान सातवीं बार विश्वकप खेलने जा रही है, उसने 2002, 2010 और पिछले विश्वकप 2018 में दूसरे दौर में प्रवेश किया। ईरान का यह छठा विश्वकप है, लेकिन आज तक उसने दूसरे दौर में प्रवेश नहीं किया। सऊदी अरब का भी यह छठा विश्वकप है, लेकिन 1994 में प्रथम प्रवेश के बाद वह कभी दूसरे दौर में जगह नहीं बना पाया। फीफा के एशियाई परिसंघ में शामिल होने के बाद ऑस्ट्रेलिया का यह चौथा विश्वकप है, लेकिन पिछले तीन मौकों पर उसे पहले दौर में ही बाहर होना पड़ा। 2002 में ओसियाना से संबंधित होकर ऑस्टे्रलिया ने दूसरे दौर में जगह बनाई थी।