चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था। नजदीक ही एक कमरे में चार मोमबत्तियां जल रही थीं। एकांत पाकर आज वे एक-दूसरे से दिल की बात कर रही थीं। पहली मोमबत्ती बोली, ''मैं शांति हूं, पर मुझे लगता है अब इस दुनिया को मेरी जरूरत नहीं है, हर तरफ आपाधापी और लूटमार मची हुई है, मैं यहां अब और नहीं रह सकती और ऐसा कहते हुए, कुछ देर में वो मोमबत्ती बुझ गई।''

दूसरी मोमबत्ती बोली, ''मैं विश्वास हूं और मुझे लगता है झूठ और फरेब के बीच मेरी भी यहां कोई जरूरत नहीं है, मैं भी यहां से जा रही हूं''

और दूसरी मोमबत्ती भी बुझ गई।

तीसरी मोमबत्ती भी दुखी होते हुए बोली, ''मैं प्रेम हूं, मेरे पास जलते रहने की ताकत है पर आज हर कोई इतना व्यस्त है कि मेरे लिए किसी के पास वक्त ही नहीं, दूसरों से तो दूर लोग अपनों से भी प्रेम करना भूलते जा रहे हैं, मैं ये सब और नहीं सह सकती मैं भी इस दुनिया से जा रही हूं''

और ऐसा कहते हुए तीसरी मोमबत्ती भी बुझ गई। वो अभी बुझी ही थी कि एक मासूम बच्चा उस कमरे में दाखिल हुआ।

मोमबत्तियों को बुझे देख कर वह घबरा गया, उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे और वह रुंआसा होते हुए बोला, ''अरे, तुम मोमबत्तियां जल क्यों नहीं रही, तुम्हें तो अंत तक जलना था?''

तभी चौथी मोमबत्ती बोली, ''प्यारे बच्चे घबराओ नहीं, मैं आशा हूं और जब तक मैं जल रही हूं हम बाकी मोमबत्तियों को फिर से जला सकते हैं।''

यह सुन कर बच्चे की आंखें चमक उठीं और उसने आशा के बल पर शांति, विश्वास और प्रेम को फिर से प्रकाशित कर दिया। अपनी आशा की मोमबत्ती को जलाए रखिए, बस अगर ये जलती रहेगी तो आप किसी भी और मोमबत्ती को प्रकाशित कर सकते हैं।