-    भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कांग्रेस पर सवाल दागे
-    कांग्रेस की दोहरी मानसिकता, पार्टी कभी नहीं चाहती थी कि राम मंदिर विवाद का हल निकले

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की दोहरी मानसिकता खुलकर सामने आ गई है। राम शब्द को लेकर कांग्रेस को शुरू से ही आपत्ति है, वहीं राम मंदिर के विषय को लेकर पार्टी चुनाव आयोग चली गई है। जबकि समय पड़ने पर कांग्रेस के बड़े नेता मंदिर भी जाते हैं और राम का नाम भी लेते हैंं। दिग्विजय ने रविवार को इस बात को स्वीकार किया के वह सनातन धर्म का पालन करने वाले सच्चे हिंदु हैं। कांग्रेस की इसी दोहरी मानसिकता को लेकर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कांग्रेस पर जमकर प्रहार किया। पार्टी प्रवक्ता ने सीधे पूछा कि यदि पार्टी को राम से परहेज है तो महात्मा गांधी की समाधि पर रघुपति राघव राजा राम, क्यों लिखा है? क्या यह सांप्रदायिकता नहीं है, और यदि मंदिर से परहेज है तो चुनाव का मौसम आते ही कांग्रेस के बड़े नेता मंदिर क्यों पहुंच जाते हैं। कांग्रेसी नेताओं के दोहरे रवैये को जनता देख भी रही है और समझ भी रही है जिसका जवाब मतदान के माध्यम से दिया जाएगा। 
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता व सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि अब क्योंकि राम मंदिर का निर्माण पूरा हो चुका है, इसलिए कांग्रेस के भीतर खलबली मच गई है कि राम मंदिर पर भाजपा को किस तरह घेरा जाए। भाजपा नेता ने कहा कि कांग्रेस राममंदिर का निर्माण कभी नहीं चाहती थी, कश्मीर की तरह ही कांग्रेस राम मंदिर के विवाद को भी उलझा कर ही रखना चाहती थी। वहीं केरल के नेताओं का हमास प्रेम एक वर्चुअल कांफ्रेंस से सामने आ गया, राहुल गांधी केरल से सांसद है।

सनातन के खिलाफ षडयंत्र का हिस्सा है मंदिर विरोध 
भाजपा नेता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि विषय सिर्फ राम मंदिर का नहीं है, बल्कि सनातन के खिलाफ षडयंत्र चलाया जा रहा है। हाल ही में एक कांफ्रेंस हुई थी, जिसका विषय था-इरेडिकेशन ऑफ सनातन। यानी सनातन का समूल नाश। उन्होंने कहा कि केरल में आतंकी संगठन हमास के एक नेता वर्चुअल रैली को संबोधित कर रहे थे। राहुल गांधी जो केरल से सांसद हैं मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि इस पर आपका क्या कहना है? उन्होंने कहा कि यह अकेला मामला नहीं है, बल्कि यह एक योजना का हिस्सा है। हमास की यह रैली और कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख द्वारा बाबरी मस्जिद कहा जाना, इससे साफ हो गया है कि कांग्रेस के पास न विकास के मुद्दे नहीं हैं। इसलिए वह अपने पुराने स्टाइल यानी सांप्रदायिकता भड़काने पर आ गई है। 
साक्ष्य न मिले इसलिए खुदाई रूकवाई
22-23 दिसंबर 1949 की रात जब अयोध्या में श्री रामलला का प्राकट्य हुआ उस समय तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री मामले को दबाने के लिए फैजाबाद पहुंच गए, लेकिन जिला मजिस्ट्रेट ने उन्हें वहीं रोक दिया। लेकिन जब बाद में विवाद बढ़ा और अदालत में पहुंचा तो 1961 में मुस्लिक वर्ग ने पक्षकार बनने से मना कर दिया। सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया केके मोहम्मद ने अपनी किताब में लिखा कि उस समय मुस्लिम समाज में एक विचार था कि हमें इस विवाद में नहीं पड़ना चाहिए, लेकिन टाइटल सूट की मियाद बीतने के 11 दिन पहले दिसंबर, 1961 में अचानक मुस्लिम पक्षकार बन गए। निश्चित तौर पर कांग्रेस ने ही मुस्लिम पक्ष को इसके लिए उकसाया था। यही नहीं, 1976 में इंदिरा गांधी जी के जमाने में जब आर्कियोलॉजिकल सर्वे की खुदाई चल रही थी, तो नीचे आठ खंबे निकल आए। तब वामपंथी इतिहासकारों के दबाव में सरकार ने खुदाई रुकवा दी और कोर्ट से यह स्टे ले लिया गया। क्योंकि उन्हें डर था कि अगर खुदाई हुई, तो वहां राम मंदिर के होने के सुबुत निकल आएगें। 

राजनीतिक फायदे के लिए संविधान का भी किया अपमान
21 वीं सदी में जब स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार ने राडर मैपिंग की रिपोर्ट प्रस्तुत की तो कोर्ट ने खुदाई करने की अनुमति दे दी। सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि 2003 में खुदाई में अयोध्या में राम मंदिर होने के साक्ष्य भी मिले, लेकिन उसके बाद कांग्रेस के ही नेता वकील का चोला ओढ़ कर तथाकथित बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी की ओर से कोर्ट में खड़े होते थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री. पी.वी. नरसिम्हा राव ने सात दिसंबर1992 को कहा था कि हम बाबरी मस्जिद दोबारा तामीर करेंगे। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने विधानसभा में कहा कि ये लोग सिर्फ जन भावना का ही अपमान नहीं कर रहे हैं। सांप्रदायिक वातावरण बिगाड़ रहे थे और इस्लाम का भी अपमान कर रहे थे, क्योंकि इस्लाम की मान्यता के अनुसार कांग्रेसी काफिर थे और एक काफिर को मस्जिद की तामीर करने का हक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा कभी विवादित रहे स्थल को स्पष्ट तौर पर राम जन्मभूमि कहे जाने के बावजूद कांग्रेसी ’बाबरी मस्जिद’ शब्द का प्रयोग करते रहे। कांग्रेस पार्टी इस मुद्दे को राजनीतिक लाभ-हानि के तराजू पर तौलती रही, जबकि भाजपा के लिए यह आस्था का विषय था और आगे भी रहेगा।